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    दस हजार सालों से ब्राह्मण भारत की छाती पर बैठा है - ओशो

     

    For ten thousand years the brahmin has been sitting on the chest of India - Osho

    दस हजार सालों से ब्राह्मण भारत की छाती पर बैठा है - ओशो 

    मनुस्मृति हिंदू धर्म का मूल आधार-ग्रंथ है, जिससे हिंदू की नीति निर्धारित होती है। वह हिंदुओं का संविधान है। मनुस्मृति कहती है: 'स्त्रियों को कोई अधिकार नहीं अध्ययन-मनन का।' पचास प्रतिशत संख्या को काट दिया। 'शूद्रों को कोई अधिकार नहीं अध्ययन-मनन का।' और जो बचे थे, उनमें से पचास प्रतिशत काट दिए। अब अधिकार रह गया सिर्फ ब्राह्मण का, क्षत्रिय का, वैश्य का। वैश्य का अधिकार इतना ही है कि वह व्यवसाय के योग्य शिक्षा प्राप्त करे। क्षत्रिय का अधिकार इतना ही है कि वह युद्ध के लड़ने योग्य शिक्षा प्राप्त करे। यही कृष्ण समझा रहे थे अर्जुन को कि तू क्षत्रिय है, तेरा धर्म लड़ना है। संन्यास तेरा धर्म नहीं है। यह ध्यान और समाधि लगाना तेरा धर्म नहीं है। तू अपना कर्तव्य निभा। ब्राह्मणों जैसी बातें न कर। क्षत्रिय है, तू लड़! नहीं तेरी अवमानना होगी, अपमान होगा। 

            क्षत्रिय को भड़काने के लिए 'अपमान' शब्द एकदम जरूरी है। बस अपमान शब्द ले आओ कि क्षत्रिय भड़का। मैं मनाली जा रहा था। तो बड़ी कार, और बीच में वर्षा हो गई। तो जो सरदार मेरी कार को चला रहा था, उसने बीच रास्ते में गाड़ी रोक दी। क्योंकि थोड़ी फिसलन थी, रास्ता चंडीगढ़ और मनाली के बीच बहुत संकरा है और खतरनाक है। और गाड़ी बड़ी थी। और बहुत सम्हल कर चलना जरूरी था। और जगह-जगह कीचड़ थी। और गाड़ी फिसलती थी, चढ़ाई भी थी। उसने कहा, 'मैं आगे नहीं जा सकता।' वह तो नीचे उतर कर बैठ गया। मैंने उससे कहा, 'यूं कर, तू पीछे बैठ जा, गाड़ी मैं चलाता हूं।' उसने कहा कि मैं जिंदगी भर पहाड़ियों में गाड़ी चलाता रहा और मुझे खतरा है कि गाड़ी गिर जाएगी और आपने शायद जिंदगी में कभी ऐसे खतरनाक रास्ते पर गाड़ी न चलाई होगी। मैं इस गाड़ी में नहीं बैठ सकता। आपको चलाना हो तो आप चलाएं। मैंने कहा, 'मुझे रास्ता मालूम नहीं, तू सिर्फ रास्ता बता।' मगर वह इसके लिए भी राजी नहीं। वह कहे कि मैं अपनी जान क्यों खतरे में डालूं? मैं तो यहीं से वापस लौटूंगा।

            बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। तभी पंजाब के आई.जी. थे, वे भी मनाली शिविर में भाग लेने आ रहे थे, सरदार थे, उनकी जीप आकर रुकी। मैंने उनसे कहा कि अब आप ही कुछ करो। तरबूज खरबूज की भाषा समझते हैं! यह मेरी भाषा समझता नहीं। अब दोनों सरदार निपट लो। और तत्क्षण बात बन गई। आई.जी. सरदार ने कहा, 'अरे शर्म नहीं आती खालसा का आदमी होकर? वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतह! उठ!' और वह सरदार एकदम उठ आया, एकदम गाड़ी चलाने लगा। फिर उसने रास्ते भर, खतरनाक और आगे रास्ता खतरनाक था, फिर उसने कुछ नहीं कहा। जहां जरा मैं उसको ढीला-ढाला देखू, कहूं: वाहे गुरु जी का खालसा! और वह एकदम फिर सम्हल जाए और गाड़ी चलाने लगे। 

            वही कृष्ण कर रहे हैं अर्जुन के साथ: 'अरे तू क्षत्रिय है! क्या अपमान करवाएगा? बेइज्जती करवाएगा? लड़ना, मरना और मारना तेरा धर्म है। तू ब्राह्मण की भाषा बोल रहा है? कि संन्यास ले लूंगा, जंगल में रहूंगा, मुझे नहीं चाहिए राजपाट! यह धन का मैं क्या करूंगा? अरे मैं तो शांति से बैलूंगा!' तो क्षत्रिय को लड़ना, बस उतनी कला सीखनी है। तब रह गया ज्ञान, ध्यान, जीवन का जो चरम अर्थ है, जीवन की जो चरम सुगंध है--उसका अधिकारी रह गया केवल ब्राह्मण। 

            दस हजार सालों से ब्राह्मण भारत की छाती पर बैठा है, अब भी यह उतरना नहीं चाहता। यही इसके पीछे है-- इन सारे उपद्रवों के पीछे है।

    - ओशो 

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